ये भी हैं हमारी तरह एक इंसान।
इनको भी है सम्मानित जीवन जीने का अधिकार।
कहते हैं इस श्रृष्टि में नहीं है कोई चीज बेकार
फिर क्यों करते हो इन पर इतने अत्याचार?
क्यों करते हो इनको अस्वीकार?
क्यों करते हो इन व्यंग्यात्मक शब्दों के बाणों से वार?
आखिर है क्या कसूर इनका?
क्या ये कि इनका लिंग निश्चित नहीं है?
तो फिर क्यों कहते हो
कि ईश्वर द्वारा निर्मित हर चीज अनोखी है?
तो फिर क्यों नहीं इन्हें अनोखा समझ कर,
इनको भी देते हो प्यार और सम्मान?
इनमें भी है भावनाएँ ,ये भी हैं प्यार के हक़दार।
मत करो इन पर व्यंग्यात्मक शब्दों के बाणों से वार।
दर्द और तकलीफ होती है इन्हें भी बेसुमार,
क्या बीतती है इन पर जब इनको
नाकार देता है इनका अपना ही परिवार।
महसूस करके तो देखो एकबार ।
करीब जाकर देखो तो एकबार
पता चलेगा कि कितनी जरूरत है इन्हें
हमारे प्यार और सम्मान की ।
जिससे इनका जीवन भी हो सके
खूबसूरत और आसान।
वाह रे मानव तू पत्थर पूज सकता है।
पर एक इंसान को नहीं दे सकता
थोड़ा सा प्यार और सम्मान।
-मनीषा गोस्वामी