Total Pageviews

298

Friday, 9 June 2023

इक चिड़िया मासूम सी

तिनका - तिनका चुनकर इक चिड़िया बना रही थी

अपना खूबसूरत सपनों का आशियान। 

जब हो गया उसके सपनों का आशियान बनकर तैयार, 

चिड़िया चहकती रहती हरपल उसी के आसपास। 

फिर इक दिन उस चिड़िया पर पड़ी दुष्ट गिद्ध की नज़र, 

जा पहुँचा वो चिड़िया के पास। 

‌‌‌‌‌‌‌‍‍‌‌‌‌‌‌‌बोला बना लो मुझे भी अपना दोस्त, 

कोई दोस्त नहीं है मेरे पास। 

यह सुन चिड़िया बोली नहीं हो तुम विश्वास के पात्र, 

हमारे बीच है असमानताओं की इक बहुत ही ऊंची दीवार। 

इसलिए दोस्त बना नहीं सकती तुमको ,

करना तुम, मुझे माफ़। 

करने लगा फिर गिद्ध मिन्नते बार बार

इक मौके के लिए जोड़ने लगा चिड़िया के आगे हाथ

और करने लगा फरियाद। 

बोला बेशक हूँ मैं जाति का गिद्ध 

पर मेरा मन है बिल्कुल साफ़। 

कुछ सोच फिर चिड़िया ने दे दिया उसे एक मौका

और थाम लिया उसका हाथ। 

खुशी-खुशी बीतते रहे दिन और महीने, 

फिर आयी बरसात। 

इसी दिन का था महीनों से गिद्ध को इंतज़ार, 

बैठा था वो घात लगाए 

चिड़िया के साथ करने को विश्वासघात। 

हो रही थी इक दिन जोरों की बरसात। 

आया गिद्ध चिड़िया के पास

लगाने लगा उसे आवाज़। 

है मुशिबत में गिद्ध शायद, इस बात का 

चिड़िया को हुआ आभास। 

तुरंत निकल कर चिड़िया बाहर आयी गिद्ध के पास। 

मासूम सी चिड़िया 

उसके बुरे इरादे से थी पूरी तरह अनजान। 

गिद्ध एक और गिद्ध को लाया था अपने साथ, 

चिड़िया के बाहर आते ही करने लगें उस पर प्रहार। 

चिड़िया चीखती रही चिल्लाती रही , 

पर नहीं सुनी किसी ने उसकी दर्दभरी पुकार। 

लड़ती रही था साहस जबतक

फिर जा गिरी जमीन पर बदहवास। 

टूट रहा था उसके आंखों के सामने 

उसके सपनों का आशियान।

आंखों से बह रही थी अश्रुधार। 

अपने फैंसले पर कर रही थी पश्चाताप । 

भरोसा टूटा,और टूटा सपनों का आशियान, 

साथ ही सांसों की डोरी टूटी, 

फिर ना आयी कभी चिड़िया की 

चहकने की मधुर आवाज़। 


Thursday, 25 May 2023

जिंदगी के दुश्मन बनने वाले जीवनसाथी क्यों कहलाते हैं



जिस शख़्स का हाथ उम्रभर 

हर मुश्किल घड़ी में थामें 

रखने के लिए थामते है, 

क्यों उसी पर हाथ उठाना 

मर्दानगी का काम 

समझने लगते हैं ? 

जिस हाथ को थाम 

कर हर मुशिबतों का 

एक साथ सामना करने का कसमें खाते हैं 

क्यों उसी शख़्स के मुशिबतों की 

वजह बनने लगते हैं? 

जिस शख़्स के कदमों से कदम 

मिलाकर चलने की कसमें खाते हैं,

 क्यों उसी शख़्स के रास्ते का 

खुद रोड़ा बनने लगते हैं? 

जिस शख़्स के हमदर्द 

बनने की कसमें खाते हैं

क्यों उसी शख़्स के दर्द की 

वजह बनने बन जाते हैं? 

जिस शख़्स को अपनी जिंदगी में 

खुशियाँ भरने के लिए शामिल करते हैं, 

क्यों उसी शख़्स के जिंदगी में 

दर्द ही दर्द भर देते हैं? 

जिसकी ताकत बनने की कसमें खाते हैं

क्यों उसकी कमजोरी की 

वजह बनने लगते हैं? 

जिंदगी को स्वर्ग बनाने की कसमें खाते हैं 

फिर क्यों जहन्नुम से भी 

बदतर बना देते हैं? 

जीवनसाथी बनने की कसमें खाते हैं

पर क्यों जिंदगी के 

दुश्मन बन बैठते हैं? 

फिर ऐसे लोग जीवनसाथी 

क्यों कहलाते हैं? 

Thursday, 18 May 2023

ऋतुराज वसंत


ऋतुराज वसंत के आगमन पर 

‌धानी सरसों पीली चूनर ओढ़ रहीं।

गीली माटी की सोंधी खुशबू 

सरसों की भीनी भीनी खुशबू संग 

घर आँगन को महका रहीं। 

मंद हवा संग सुनहरी किरणें 

ओस से गीले खेतों की चमक बड़ा रही। 

मनमोहक दृश्य कृषक के हृदयतल में 

उम्मीदों का पौधा लगा रहे, 

‌मन की अंधेरी गलियों में 

उम्मीद का दीपक जला रहे। 

प्रकृति कृषक के लबों पर  

‌अदभुत मुसकान बिखेर रही।

‌सूरज की सुनहरी किरणें कृषक की

सूनी सूनी अंखियों में खुशियों की चमक ला रही।

‌कोयल की कूँ कूँ कानों में मिश्री घोल रही।

‌ गोरी के हृदयतल में प्रेम का पौधा लगा रही ।

‌प्रीत नगर की गलियों में प्रेम की सहनाई बजा रही, 

झील सी गहरी अंखियों में सुनहरे सपने सजा़ रही। 

नये नये पत्ते वृक्षों को रंग बिरंगे नये वस्त्र पहना रहें। 

अम्बवा फूट रहें ,टेसू फूल रहें।

‌वसंत ऋतु को प्रकृति ऋतुराज बना रही, 

‌प्रकृति की खूबसूरती भाषा की धरती पर, 

‌कविता की धारा बहा रही रही!

Saturday, 29 April 2023

ये भी हैं प्यार और सम्मान के हक़दार


पत्थर नहीं हैं ये, 

ये भी हैं हमारी तरह एक इंसान। 

इनको भी है सम्मानित जीवन जीने का अधिकार। 

कहते हैं इस श्रृष्टि में नहीं है कोई चीज बेकार

फिर क्यों करते हो इन पर इतने अत्याचार? 

क्यों करते हो इनको अस्वीकार? 

क्यों करते हो इन व्यंग्यात्मक शब्दों के बाणों से वार? 

आखिर है क्या कसूर इनका? 

क्या ये कि इनका लिंग निश्चित नहीं है? 

तो फिर क्यों कहते हो 

कि ईश्वर द्वारा निर्मित हर चीज अनोखी है? 

तो फिर क्यों नहीं इन्हें अनोखा समझ कर, 

इनको भी देते हो प्यार और सम्मान? 

इनमें भी है भावनाएँ ,ये भी हैं प्यार के हक़दार। 

मत करो इन पर व्यंग्यात्मक शब्दों के बाणों से वार। 

दर्द और तकलीफ होती है इन्हें भी बेसुमार, 

क्या बीतती है इन पर जब इनको

नाकार देता है इनका अपना ही परिवार। 

महसूस करके तो देखो एकबार । 

करीब जाकर देखो तो एकबार 

पता चलेगा कि कितनी जरूरत है इन्हें

हमारे प्यार और सम्मान की । 

जिससे इनका जीवन भी हो सके

खूबसूरत और आसान। 

वाह रे मानव तू पत्थर पूज सकता है। 

पर एक इंसान को नहीं दे सकता 

थोड़ा सा प्यार और सम्मान।    

-मनीषा गोस्वामी


इक चिड़िया मासूम सी

तिनका - तिनका चुनकर इक चिड़िया बना रही थी अपना खूबसूरत सपनों का आशियान।  जब हो गया उसके सपनों का आशियान बनकर तैयार,  चिड़िया चहकती रहती हरपल...