तिनका - तिनका चुनकर इक चिड़िया बना रही थी
अपना खूबसूरत सपनों का आशियान।
जब हो गया उसके सपनों का आशियान बनकर तैयार,
चिड़िया चहकती रहती हरपल उसी के आसपास।
फिर इक दिन उस चिड़िया पर पड़ी दुष्ट गिद्ध की नज़र,
जा पहुँचा वो चिड़िया के पास।
बोला बना लो मुझे भी अपना दोस्त,
कोई दोस्त नहीं है मेरे पास।
यह सुन चिड़िया बोली नहीं हो तुम विश्वास के पात्र,
हमारे बीच है असमानताओं की इक बहुत ही ऊंची दीवार।
इसलिए दोस्त बना नहीं सकती तुमको ,
करना तुम, मुझे माफ़।
करने लगा फिर गिद्ध मिन्नते बार बार
इक मौके के लिए जोड़ने लगा चिड़िया के आगे हाथ
और करने लगा फरियाद।
बोला बेशक हूँ मैं जाति का गिद्ध
पर मेरा मन है बिल्कुल साफ़।
कुछ सोच फिर चिड़िया ने दे दिया उसे एक मौका
और थाम लिया उसका हाथ।
खुशी-खुशी बीतते रहे दिन और महीने,
फिर आयी बरसात।
इसी दिन का था महीनों से गिद्ध को इंतज़ार,
बैठा था वो घात लगाए
चिड़िया के साथ करने को विश्वासघात।
हो रही थी इक दिन जोरों की बरसात।
आया गिद्ध चिड़िया के पास
लगाने लगा उसे आवाज़।
है मुशिबत में गिद्ध शायद, इस बात का
चिड़िया को हुआ आभास।
तुरंत निकल कर चिड़िया बाहर आयी गिद्ध के पास।
मासूम सी चिड़िया
उसके बुरे इरादे से थी पूरी तरह अनजान।
गिद्ध एक और गिद्ध को लाया था अपने साथ,
चिड़िया के बाहर आते ही करने लगें उस पर प्रहार।
चिड़िया चीखती रही चिल्लाती रही ,
पर नहीं सुनी किसी ने उसकी दर्दभरी पुकार।
लड़ती रही था साहस जबतक
फिर जा गिरी जमीन पर बदहवास।
टूट रहा था उसके आंखों के सामने
उसके सपनों का आशियान।
आंखों से बह रही थी अश्रुधार।
अपने फैंसले पर कर रही थी पश्चाताप ।
भरोसा टूटा,और टूटा सपनों का आशियान,
साथ ही सांसों की डोरी टूटी,
फिर ना आयी कभी चिड़िया की
चहकने की मधुर आवाज़।