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Thursday, 25 May 2023

जिंदगी के दुश्मन बनने वाले जीवनसाथी क्यों कहलाते हैं



जिस शख़्स का हाथ उम्रभर 

हर मुश्किल घड़ी में थामें 

रखने के लिए थामते है, 

क्यों उसी पर हाथ उठाना 

मर्दानगी का काम 

समझने लगते हैं ? 

जिस हाथ को थाम 

कर हर मुशिबतों का 

एक साथ सामना करने का कसमें खाते हैं 

क्यों उसी शख़्स के मुशिबतों की 

वजह बनने लगते हैं? 

जिस शख़्स के कदमों से कदम 

मिलाकर चलने की कसमें खाते हैं,

 क्यों उसी शख़्स के रास्ते का 

खुद रोड़ा बनने लगते हैं? 

जिस शख़्स के हमदर्द 

बनने की कसमें खाते हैं

क्यों उसी शख़्स के दर्द की 

वजह बनने बन जाते हैं? 

जिस शख़्स को अपनी जिंदगी में 

खुशियाँ भरने के लिए शामिल करते हैं, 

क्यों उसी शख़्स के जिंदगी में 

दर्द ही दर्द भर देते हैं? 

जिसकी ताकत बनने की कसमें खाते हैं

क्यों उसकी कमजोरी की 

वजह बनने लगते हैं? 

जिंदगी को स्वर्ग बनाने की कसमें खाते हैं 

फिर क्यों जहन्नुम से भी 

बदतर बना देते हैं? 

जीवनसाथी बनने की कसमें खाते हैं

पर क्यों जिंदगी के 

दुश्मन बन बैठते हैं? 

फिर ऐसे लोग जीवनसाथी 

क्यों कहलाते हैं? 

Thursday, 18 May 2023

ऋतुराज वसंत


ऋतुराज वसंत के आगमन पर 

‌धानी सरसों पीली चूनर ओढ़ रहीं।

गीली माटी की सोंधी खुशबू 

सरसों की भीनी भीनी खुशबू संग 

घर आँगन को महका रहीं। 

मंद हवा संग सुनहरी किरणें 

ओस से गीले खेतों की चमक बड़ा रही। 

मनमोहक दृश्य कृषक के हृदयतल में 

उम्मीदों का पौधा लगा रहे, 

‌मन की अंधेरी गलियों में 

उम्मीद का दीपक जला रहे। 

प्रकृति कृषक के लबों पर  

‌अदभुत मुसकान बिखेर रही।

‌सूरज की सुनहरी किरणें कृषक की

सूनी सूनी अंखियों में खुशियों की चमक ला रही।

‌कोयल की कूँ कूँ कानों में मिश्री घोल रही।

‌ गोरी के हृदयतल में प्रेम का पौधा लगा रही ।

‌प्रीत नगर की गलियों में प्रेम की सहनाई बजा रही, 

झील सी गहरी अंखियों में सुनहरे सपने सजा़ रही। 

नये नये पत्ते वृक्षों को रंग बिरंगे नये वस्त्र पहना रहें। 

अम्बवा फूट रहें ,टेसू फूल रहें।

‌वसंत ऋतु को प्रकृति ऋतुराज बना रही, 

‌प्रकृति की खूबसूरती भाषा की धरती पर, 

‌कविता की धारा बहा रही रही!

इक चिड़िया मासूम सी

तिनका - तिनका चुनकर इक चिड़िया बना रही थी अपना खूबसूरत सपनों का आशियान।  जब हो गया उसके सपनों का आशियान बनकर तैयार,  चिड़िया चहकती रहती हरपल...